सच्चे भजन-ध्यान में लगने वाले विरले ही निकलते है । एकान्त में निवासकर भजन-ध्यान करना बुरा नहीं है । परन्तु यह साधारण बात नहीं है । इसके लिए बहुत अभ्यास की आवश्यकता है और यह अभ्यास कर्म करते हुए ही क्रमश: बढ़ाया और गाढ़ किया जा सकता है, इसलिए भगवान ने कहा है की नित्य-निरन्तर मेरा स्मरण करते हुए फलासक्तिरहित होकर मेरी आज्ञा से मेरी प्रीति के लिए कर्म करना चाहिए ।
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